आज हम अपने समाज के जिस चित्रण को और समाज से सम्बन्धित चिन्तन को स्वीकार कर चुके हैं वह वास्तविक रूप से क्रैस्त थियालोजी के विचार हैं। इस थियालोजी के जो विचार हैं वे सीधा नहीं दिखाई देते हैं। यह परोक्ष रीति से अपना प्रभाव दिखाते हैे। इस रोचक विषय की चर्चा होगी।
हर कहानी का एक आरम्भ होता है। इस लेख को पढ़ने से पहले यह कहानी सुनिये। इस कहानी में तीन सूत्र हैं। पहला सूत्र जैनेसिस नामक अध्याय से शुरू होता है। वह मनुकुल एवं रिलिजन की उत्पत्ति की कहानी है। पहले गॉड अकेला था। उन्होंने इस सृष्टि का सृजन किया। इस सृष्टि के सृजन के पीछे एक और उद्देश्य था। उन्होंने मानवों की भी सृष्टि की थी। वे ही आडम् और ईव हैं। यही दो लोग समस्त मानव जाति के मूल पुरुष हैं। वे दोनों स्वर्ग के ईडन बाग में रहा करते थे। एक बार वे गॉड की आज्ञा का उल्लंघन कर वहाँ के फल तोडकर खा लेते हैं। उस अपराध के लिए उन्हें गॉड से अभिशप्त होकर स्वर्ग खोना पड़ता है। आगे उन्हीं की संतान दुनिया भर में फैल गयी है। वे अलग–अलग जनांग बने, उनके अभिलक्षण भी भिन्न रहे। पाश्चिमात्य लोग जब 16वीं सदी में अन्यान्य भूखंडों का अन्वेषण करने लगे तब उन्हें अलग–अलग संस्कृतियों का परिचय हुआ। भिन्न संस्कृतियों के सन्दर्भ में उनके दिमाग में बाइबिल की उपरोक्त कहानी ही रही।
मैं जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, उसे और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ अन्य विवरणों के साथ पेश आता हूँ। आडम् और ईव को अपने किये हुए सिन को भुगतने के लिए स्वर्ग को छोड़कर भूमि पर आना पड़ा। उन्हें स्वयं गॉड ने भरोसा दिया कि समय–समय पर आकर वह उनका उद्धार करने का उपाय बतायेंगे। परन्तु उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि तुम लोग आज्ञा का उल्लंघन नहीं करोगे तो आप सिन से मुक्त होकर पुनः स्वर्ग की प्राप्ति कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि हीनावस्था से मनुकुल का उत्थान होना है तो वही एक मार्ग है कि गॉड की आशा का पालन करना सभी मनुष्यों का अन्तिम लक्ष्य, उद्धार होकर स्वर्ग प्राप्ति करना और उसके लिए गॉड की आज्ञा का पालन करना। यह मार्ग रिलिजन कहलाया जाता है। रिलिजन का अर्थ है गॉड से छूट गये अनुबन्धों को पुनःस्थापित करने का साधन। एक ओर इस मार्ग को जूड़ाइज्म के नाम से पुकारा गया, दूसरी ओर क्रिश्चियनिटी और तीसरी ओर इस्लाम नाम से जाना गया। गॉड ने हर बार मध्य एशिया में प्रकट होकर रिलिजन को प्रदान किया है। स्वयं सृष्टिकर्ता ही प्रकट होकर अपना उद्देश्य एवं आज्ञा केवल इन्हीं रिलिजनों में व्यक्त किया है। यह आज्ञा केवल रिलिजन के अनुयायियों के लिए नहीं है। वह पूरे मानव जनांग के लिए लागू होता है। रिलिजन से परे क्यों न हो; पर उन सभी को गॉड की आज्ञा का पालन करना ही है। यदि कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे शाश्वत नर्क की प्राप्ति होती है।
इन रिलिजनों को अब्राह्मिक रिलिजन व सेमेटिक रिलिजन नाम से पुकारते हैं। इन धर्म के विभूति पुरुषों की पीढ़ी है। वे आडम और ईव से लेकर, अपने प्रवादियों तक का सम्बन्ध जोड़ देते हैं। उनमें मोसेस और नोवा प्रमुख हैं, उनके रिलिजन ग्रन्थों के मुताबिक नोवा के तीन बच्चे हैं। उनके बच्चों में से सेम नामक पुत्र से सेमेटिक रिलिजन मध्य एशिया में प्रसारित हुआ। इसीलिए मध्य एशिया का रिलिजन सेमेटिक रिलिजन के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं गॉड ने उपरोक्त तीनों रिलिजनों को केवल इन लोगों को ही प्रदान किया है। इसीलिए विद्वान लोग इन्हें सेमेटिक रिलिजन कहते हैं। सेम के बाद अनेक पीढ़ियों के उपरांत उसी पीढ़ी में अब्राहम नामक महापुरुष का अवतार हुआ। इस अब्राहम की संतान को गॉड बार–बार प्रत्यक्ष होकर अपना रहस्य बता देते हैं। इसीलिए इन तीनों रिलिजन को अब्राह्मिक रिलिजन के नाम से भी पुकारते हैं। उपरोक्त धर्म के अनुयायी केवल अपने रिलिजन को सत्य कहकर प्रतिपादन करते हैं। क्योंकि उनके अनुसार गॉड ने एक ही उद्देश्य के लिए मनुष्यों की सृष्टि की है और उन्हें एक अन्तिम लक्ष्य को भी प्रदान किया है जिसकी प्राप्ति के लिए उनकी आज्ञा का पालन करने का आदेश दिया। इस प्रकार मानव सृष्टि के पीछे गॉड का उद्देश्य और एक योजना है। उसके द्वारा वे समस्त मानव कुल का नियंत्रण करते हैं। इस सृष्टि के रहस्यों को स्वयं गॉड ने इन रिलिजन के अनुयायियों को बताया है।
मेरी कहानी का दूसरा सूत्र प्रोटेस्टैंट सुधार से सम्बन्धित है। उपरोक्त रिलिजन में से क्रिश्चियनिटी पूरे यूरोप में फैलकर सदियों तक अपना आधिपत्य करता रहा। वह रोमन कैथोलिक चर्च के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यूरोप की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति इसके नियंत्रण में ही रूपायित हुए। रिलिजन में कैथोलिक चर्च नामक संस्था अपने अधिकार व श्रेणीकरण को सुनियोजित रूप से बनाकर रिलिजन के सन्दर्भ में निर्णायक भूमिका निभाती है। चर्च का विधिविधान, उसके प्रीस्ट और क्लेर्जी का स्थान–मान आदि नियमों के कारण कालांतर में रिलिजन का अर्थ चर्च बना है। साथ ही रिलिजन का मतलब चर्च के अधिकार और उसके श्रेणीकरण तक सीमित हुआ। ऐसी प्रक्षुब्ध परिस्थिति के बीच 16वीं सदी में कैथोलिक चर्च के विरुद्ध लोग भड़क उठे, तब चर्च को सुधार कर सही रिलिजन को समान रीति से सभी के लिए मुक्त करने का जो आन्दोलन हुआ वही प्रोटेस्टैंट आन्दोलन है।
प्रोटेस्टैंट आन्दोलन पूरे उत्तर यूरोप में फैलकर लोकप्रिय बना। मार्टिन लूथर इसके प्रवर्तक हैं। कालांतर में कई प्रांतीय संस्थाएँ भी उत्पन्न हुई। प्रोटेस्टैंटों के अनुसार रिलिजन का मूल सत्य शनैः शनैः नष्ट होता है। अर्थात् रिलिजन समय– समय पर भ्रष्ट हो जाता है। वह रिलिजन के अधिकार के संस्थीकरण से ऐसा होता है। इसीलिए रिलिजन के भ्रष्ट होने की प्रक्रिया में प्रीस्ट और क्लेर्जी वर्ग का ही अपराध साबित होता है। प्रोटेस्टैंट रिलिजन के अनुसार बाइबिल में गॉड ने सचमुच यह बताया है कि हर एक व्यक्ति अपने आप में ही एक चर्च है और उसके लिए खुद प्रीस्ट है। इसका मतलब यह है कि गॉड के साथ हर एक व्यक्ति का सीधा सम्बन्ध है। उसके लिए मध्यवर्तियों की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार प्रोटेस्टैंटिइज्म के कारण कैथोलिक क्रिश्चियनिटी का अपना भौतिक अस्तित्व अमूर्त बन गया। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि 16वीं सदी में यूरोप में रिलिजन की अवनति तथा उसकी प्रक्रियाएँ सच्चा रिलिजन एवं झूठा रिलिजन से सम्बन्धित चर्चाओं के बारे में प्रोटेस्टैटों की बहस सामान्य ज्ञान के एक अंग के रूप में महत्त्व पाया था।
मेरी कहानी का तीसरा सूत्र सेक्युलरिज्म से सम्बन्धित है। सेक्युलरिज्म का मतलब रिलिजन से बाहर आने की प्रक्रिया। लगभग 17-18 वीं सदी में पूरे यूरोप में एक वैचारिक क्रांति की आँधी मच गयी थी। वह ‘ज्ञानोदय का युग‘ अथवा ‘क्रांति युग‘ नाम से पुकारा जाता है। उस काल में मानवीय एवं लौकिक सच्चाइयों से सम्बन्धित जानकारी को चर्च व रिलिजन की परिभाषा से निकालकर; उसे सेक्युलर रूप देने का प्रयास किया गया है। वह एक आंदोलन ही बन गया जिसमें चर्च के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करके; रिलिजन का पर्दाफाश किया गया अथवा यूँ कहिए कि उसके अन्धविश्वासों की जकड़ से लोगों को मुक्त कर दिया गया। इन चिन्तकों ने मनुष्य से सम्बन्धित नये सिद्धान्त तथा उससे सम्बन्धित कहानी बुनने का सक्षम प्रयास किया। उन नये सिद्धान्त एवं कहानियों द्वारा उन्होंने रिलिजन की कहानियों का तिरस्कार किया। इस प्रकार पश्चिम के निर्दिष्ट वेश धारण की हई रिलिजन की कहानी के बदले, मनुकुल से सम्बन्धित सार्वजनिक वैज्ञानिक सत्यों तथा मूल्यों का आविष्कार होने लगा। उन्होंने ही मनुष्य कुल को सही ज्ञान देने का भरोसा दिया।
परन्तु सेक्युलरवादी चिन्तकों ने यह किया कि केवल सेमेटिक रिलिजन तक सीमित धारणाओं को सार्वजनिक बनाकर उसका प्रसार किया। पूरे यूरोप में जब यह चिन्तन प्रक्रिया जारी रही तब सेक्युलरिज्म का संसार थियोलोजी से रूपायित हुआ। प्रायः प्रोटेस्टैंटों के अमूर्त प्रतिपादन ही इन चिन्तन प्रणाली की आधारशिला रही। यूरोप में आमलोगों की भाषा व समझ में रिलिजन के ग्रहित की ताना–बाना लक्षित होती है। उसे सरसरी नजर से देखा जाए तो बाइबिल में चित्रित घटनाओं तथा थियोलोजी में कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता था। किन्तु उन्हें थियोलोजी ही मूलाधार था। परन्तु दिखने में वे सेक्युलर थे।
ज्ञानोदय-युग में इन विचारों को आधार बनाकर मानव से सम्बन्धित नये सिद्धान्त एवं चिन्तन रूपायित हुए। इसी कारण उपरोक्त ज्ञानोदय-युग के चिन्तन रिलिजन का खंडन करने की तरह दिखने पर भी रिलिजन के ही आधारवाक्यों का उपयोग चोरी–चुपके स्वीकृत करते हैं। परिणाम यह हुआ कि थियोलोजी ही छद्मवेश में सेक्युलर चिन्तन के रूप में प्रचलित हुआ। रिलिजन गायब हुआ, परन्तु उसके सत्य जो हैं वह सार्वजनिक सत्य बने।
यूरोप का इतिहास बताता है कि उपरोक्त तीनों कथासूत्र बिल्कुल अलग–अलग हैं। परन्तु इन तीनों सूत्रों को उपरोक्त रीति से पिरोया जाए तो हमें पता चलता है कि इसमें एक ही कहानी के तीन सूत्र हैं। इस कहानी का आरम्भ बिंदु बाइबिल के जिनेसिस में पाया जाता है। इसका अंत उपनिवेश काल के समाज विज्ञान में है। पाश्चिमात्य चिन्तकों ने उपरोक्त चिन्तन प्रणाली के आधार पर भारत जैसी अन्य संस्कृति से सम्बन्धित समाज विज्ञान के सिद्धान्तों को रूपायित किया। उन्होंने जिस परिकल्पना को ध्यान में रखकर अपने समाज को समझने का प्रयास किया था। उसी परिकल्पना को आधार बनाकर भारतीय संस्कृति जैसी अन्य संस्कृतियों को समझने का प्रयास किया। इसी कारण उन्हें अन्य संस्कृतियों में अपनी संस्कृति का प्रतिबिंब ही दिखाई दिया। वे समझते थे कि भारतीयों का भी हमारा जैसा रिलिजन है। वह रिलिजन भ्रष्ट हुआ। वहाँ भी भ्रष्टता के विरुद्ध आन्दोलन हुए, वहाँ भी डॉक्ट्रिन, पवित्र ग्रन्थ, पुरोहितशाही आदि हैं। उनकी भी हमारे जैसी नार्मेटिव भाषा है। परन्तु उन्हें एहसास हुआ कि किसी भी प्रतिरूप में उनकी संस्कृति के मूलरूप की तरह परिपूर्णता नहीं है। वे समझते हैं कि यहाँ रिलिजन है परन्तु वह भ्रष्ट हो गया है। इस उपरोक्त रीति की पश्चिम परिकल्पना को हमारे लोग मान गये थे। उनके साथ हमारे लोग भी अपने हाथ जोड़ दिये और पश्चिम की परिकल्पना के आधार पर ही हमारी अपनी संस्कृति का चित्र खींचा गया। इसका मतलब यह है कि समाज-विज्ञान में प्रस्तुत मानव संसार का वर्णन करने के लिए हमारे पास वही एकमात्र आधार था जिसे पाश्चिमात्यों ने सिखाया। उसमें वही रिलिजन की देववाणी और वही रिलिजन की भाषा पायी जाती है। परन्तु एक सवाल उठता है, क्यों सृष्टिकर्ता हर बार केवल अरेबिया के मरुस्थल में ही प्रकट होते हैं? केवल सेमेटिक रिलिजन को ही क्यों सत्य मानते हैं? यह बात कहाँ तक सत्य है? यदि यह सही है तो पाश्चिमात्य चिन्तकों के प्रतिपादन को मान सकते हैं। परन्तु आगे के अध्यायों में आपके अनुभवजन्य विषयों को लेकर जो चर्चा होगी तो आपके दिमाग में उपरोक्त पश्चिम द्वारा प्रतिपादित सत्य के प्रति सन्देह उठे बिना नहीं रह सकता है। आपका अनुभव अलग है और उपरोक्त पश्चिम की कहानी अलग है। तब हमें महसूस होगा कि हमारे जीवन विधान में पश्चिम से प्रतिपादित सत्य का क्या स्थान है? इस अनबुझी पहेली को सुलझाने में उपरोक्त कहानी सहायक होगी।