Home बौद्धिक दास्य में भारत भगवान अथवा गॉड पर विश्वास रखने का मतलब क्या है 

भगवान अथवा गॉड पर विश्वास रखने का मतलब क्या है 

by S. N. Balagangadhara
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अंग्रेजी भाषा के ‘बिलीफ’ शब्द का अर्थ होता है कि किसी कही हुई बात या Doctrine को सत्य समझकर विश्वास करना। जब पाश्चात्य लोग भारत आये तब उन्हें लगा कि यहाँ भी रिलीजन है तो वे ढूँढ़ने लगे कि हमारे आचरण के पीछे ‘बिलीफ’ क्या हैं? हम समझ रहे हैं कि हमारे आचरण के पीछे कोई बिलीफ है। ‘बिलीफ’ शब्द का हिन्दी में विश्वास कहकर (यकीन, भरोसा आदि शब्द का भी उपयोग किया जाता है) अनुवाद किया गया है। इससे कितनी अटकले होती हैं । यहाँ उदाहरण के साथ समझाने का प्रयास किया गया है। 

मुझे भगवान पर विश्वास नहीं है, इस प्रकार की बात हिन्दी में बोली जाती है। इस प्रकार बोलने वालों के मन में क्या है? इस वाक्य का उद्देश्य यह है कि भारत में लोग जिस शिव, विष्णु, ब्रह्मा, दुर्गा, काली आदि देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वह पूजा-पाठ हम नहीं करेंगे. किसी भी भगवान की तस्वीर नहीं रखेंगे अथवा दूसरे लोगों के पूजा-पाठ करने पर भी उसमें भाग नहीं लेंगे। भगवान से किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए मिन्नत नहीं माँगेंगे।’ कभी यह भी बोलते हुए लोगों को देखते हैं कि ‘इस पर मुझे विश्वास नहीं है पर घर वालों के लिए ऐसा करता हूँ।’ 

हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोग भी पाये जाते हैं, जो बिना किसी भक्ति के साम्प्रदायिक आचरण करते हैं। परन्तु वे लोग कभी नहीं बोलते, या कभी महसूस भी नहीं करते हैं कि हम भगवान पर विश्वास नहीं करते हैं। अगर कोई पूछे तो वे बता देंगे कि ‘हम मानते हैं, हमें विश्वास है, नहीं है तो हम पूजा क्यों करते हैं?’ ‘मुझे भगवान पर विश्वास है, परन्तु पूजा-पाठ, साम्प्रदायिक आचरण में विश्वास नहीं है।’ ऐसे बोलने वाले लोग भी मिलते हैं। इन सन्दर्भो में समस्या का समाधान मिलना तो दूर की बात रही। बल्कि समस्या और भी जटिल हो जाती है। सवाल आयेगा कि पूजा पर विश्वास रखने का मतलब क्या है?

हिन्दी में विश्वास शब्द का प्रयोग किसी को मानना, किसी पर भरोसा रखना, साम्प्रदायिक दृष्टि से भगवान पर श्रद्धा रखना आदि सन्दर्भो में होता है। जैसे कि ‘वह बहुत विश्वास योग्य है, ईश्वर पर मुझे विश्वास है, पूजा-पाठ में विश्वास है आदि। ‘मुझे भगवान पर विश्वास नहीं है’ कहें या ‘मैं भगवान को नहीं मानता’ आदि हिन्दी वाक्य जो है वह अंग्रेजी वाक्य ‘I do not believe in God’ वाक्य का अनुवाद है। बिलीव शब्द जो है वह ‘सत्यवाक्य’ से सम्बन्धित एक रवैया है। मैं गॉड पर विश्वास नहीं करता हूँ, कहने का मतलब गॉड नामक एक व्यक्ति है, जिसने इस संसार की सृष्टि की है, उसने एक उद्देश्य रखकर इस संसार की सृष्टि का कार्य किया है आदि बाइबिल में  जो उल्लेखित कथा है, उस पर मुझे विश्वास नहीं है। बाइबिल में जो उल्लेख हआ है उसे मैं सत्य नहीं मानता हूँ। हिन्दी में विश्वास रखना शब्द को हम बिलीफ के अर्थ में उपयोग करते हैं। मुझे उस पर विश्वास नहीं है और मैं उसकी बात नहीं मानता हूँ, इन दो वाक्यों में अर्थ अलग निकलता है। जैसे मैं ये नहीं मानता हूँ (विश्वास नहीं करता) कि अयोध्या राम जन्मभूमि है। इसका मतलब यह हुआ कि राम नामक एक व्यक्ति था जो अयोध्या में पैदा हुआ था ऐसा कहना मैं नहीं मानता हूँ। इस वाक्य का सच्चाई या झूठेपन के बारे हम चर्चा कर सकते हैं। अब दूसरा वाक्य लेते हैं मुझे राम पर विश्वास नहीं है अथवा मैं भगवान राम को नहीं मानता हूँ इसलिए पूजा-पाठ पर मुझे विश्वास नहीं है। इन दोनों वाक्यों के अर्थ में अन्तर है। पहले वाक्य में सच या झूठ का सवाल आता है, लेकिन दूसरे वाक्य में ऐसा नहीं होता है, यह स्थिति भाषा प्रयोग के हिसाब से विचित्र लगती है। दूसरे वाक्य में पूजा-पाठ नहीं मानता हूँ क्योंकि मुझे भगवान पर विश्वास नहीं है इस अर्थ का प्रयोग हुआ है। पर हमारे देवी-देवताएँ सत्य हैं या झूठ हैं ऐसी बात करना ही हमें अपरिचित है और अजीब-सा लगता है। मान लीजिए कि हम कृष्ण की सोलह सहस्र रानियाँ थीं कहते हैं, परन्तु कभी नहीं चर्चा करते हैं कि उतनी रानियाँ थीं या नहीं। इसे सत्य की कसौटी पर कसने की बात ही नहीं आती है, हमारे लिए वह बात असहज है। 

मसलन ‘मैं भगवान को नहीं मानता या विश्वास नहीं करता’ वाक्य क्रिश्चियनिटी जैसे रिलिजन के सन्दर्भ में ठीक होता है। वहाँ का गॉड हमारे अनगिनत देवताओं का वाचक नहीं है। वह एकैक सत्य देव या True God का सूचक है। हम भगवान शब्द का उपयोग सभी देवी देवताओं को मिलाकर करते हैं जैसे शिव, विष्णु, गणेश आदि सभी को भगवान कहते हैं। उन सभी को मिलाकर एकवचन का प्रयोग करते हैं। पश्चिम में केवल एकैक True God है। प्रायः यह समस्या ब्रिटिश उपनिवेश के बाद उत्पन्न हुई समस्या होगी। 

रिलिजन जो है वह अपने अनुयायियों को इस सृष्टि के रहस्य के बारे में एक सच्चाई बताता है, जैसे सृष्टि के पीछे एक एकैक True God रहता है। विभिन्न सेमेटिक रिलिजन जो रहते हैं वे उनके अपने सत्य प्रतिपादन करते हैं। उनके अनुयायी उसे मानना अनिवार्य कहते है। रिलिजन से सम्बन्धित जो सत्य बताने वाली कथा को प्रत्येक रिलिजन के अनुयायी को मानना ही पड़ता है, नहीं तो वह उस रिलिजन का व्यक्ति नहीं हो सकता हैं। इसीलिए रिलिजन के अनुयायी को ‘बिलीफ’ अत्यावश्यक है (यहाँ भारत में बिलीफ को विश्वास कहने की एक आदत है)। रिलिजन के अनुसार उनसे प्रतिपादित True God जो है वह इस दुनिया से बाहर रहकर संसार की सृष्टि की है। जो मनुष्य, सृष्टि के और उसके उद्देश्य के अंग हैं, ऐसा True God एकैक हो सकता है अनेक नहीं। हमें मानना पड़ेगा कि वह इसी नाम मात्र से जाना जाता है, अन्य किसी नाम से नहीं। उसके सही नाम का पता प्रवादि को हुआ है जिसके सामने True God प्रकट होकर सत्यवाणी द्वारा बताया है, वही प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसीलिए प्रत्येक रिलिजन के पवित्र ग्रन्थ. प्रवादि, True God आदि निर्दिष्ट होते हैं। उसे मानना व विश्वास रखना अनिवार्य है। यदि कोई वह True God नहीं है कहे तो उसके लिए रिलिजन नहीं है। उसके साथ उस रिलिजन के किसी भी आचरण से वह अन्य हो जाता है। गॉड पर विश्वास न रखने का मतलब उस रिलिजन के जीवन क्रम से बाहर आना। जैसे कोई क्रिश्चियन व्यक्ति मुझे गॉड व येशु क्रिस्त पर विश्वास नहीं है कहने का मतलब उसे क्रिश्चियानिटी को नहीं मानता है। धर्म छोड़ता है। 

क्रैस्तो का मानना है कि सृष्टिकर्ता गॉड इस संसार के सभी क्रिया कलाप के लिए कारण है। दुनिया के क्रिया कलाप के बारे में वैज्ञानिक आविष्कार और उसके विवरण के साथ ही साथ अथेइज्म भी (जिसे नास्तिकवाद भी बोलते हैं) पश्चिम में पनपने लगा। गॉड द्वारा सृजित यह दुनिया किस नियम के आधार से चलती है? उसमें गॉड का उद्देश्य कैसे निहित हुआ है? आदि सवालों का समाधान ढूँढ़ते हुए आधुनिक विज्ञान का आविष्कार हुआ। इन सवालों का समाधान ढूँढ़ने की दिशा में आधुनिक विज्ञान ने प्राकृतिक नियमों के बारे में सिद्धान्त बनाया। इसी कारण से विज्ञानियों को उसे अथेयिष्ट होने की अनिवार्यता नहीं है तथा विज्ञान और रिलिजन के बीच इस दृष्टि से संघर्ष नहीं है। 

परन्तु अथेइज्म जो है वह विज्ञान का आश्रय लेने के बावजूद विज्ञान के सवालों को अथेइज्म का स्वरूप देता है। जैसे ‘इस दुनिया का सृजन गॉड ने नहीं किया तो किसने किया? दुनिया के ऊपर गॉड का नियंत्रण नहीं है तो किससे यह परिचालित होती है? आदि। यहाँ अथेइज्म का मूल उद्देश्य रिलिजन के दिये हुए विवरण को वैज्ञानिक विवरण के आधार से झठा सिद्ध करना है। इसीलिए पवाडों का पर्दाफाश करना विज्ञान का काम नहीं है। वह गॉड नहीं है कहकर गॉड पर विश्वास न करने के लिए पैदा हुआ कार्यक्रम है।

पहले ही कहा गया कि अथेयिस्ट शब्द का अनुवाद ‘नास्तिक, निरीश्वरवादी’ कर दिया है। उस अनूदित शब्द से भी आपत्ति है। क्योंकि नास्तिक नामक भारतीय शब्द और अथेयिष्ट शब्द का अर्थ अलग-अलग है। आस्तिक और नास्तिक शब्द वैदिक तथा वेदविरोधी के अर्थ में प्रचलित हैं। आस्तिक का मतलब ‘है’ कहने वाला। मसलन परमतत्त्व है कहकर विश्वास करनेवाला, परमात्मा को कल्पित करने वाले सभी भक्ति ग्रंथ वेद की पंक्ति में ही आते हैं। बौद्ध, जैन आदि मत नास्तिक पंथ नाम से जाने जाते हैं। नास्ति शब्द का अर्थ ‘नहीं’ है। बौद्ध जैनादि मत शून्य, निर्वाण आदि की कल्पना करके परमात्मा नामक कोई अविनाशी तत्त्व नहीं है; कहते हैं। 

जो कुछ भी हो नास्तिक कहलाने वाले लोग जो हैं वे भगवान को दूर रखनेवाले नहीं हैं। बौद्ध एवं जैनों में भी देवी-देवताओं, मूर्तिपूजा आदि का आचरण है। उसे ग्रहण करने की दृष्टि अलग है। उसी प्रकार तपस्या, ध्यान, आवागमन चक्र से मुक्ति आदि जो हैं वे आस्तिक एवं नास्तिक लोगों के परमार्थ साधन हैं। मैं भगवान पर यकीन नहीं करता हूँ कहने वाले आजकल के लोग नास्तिक कहलाने वाले लोग नहीं हैं। निरीश्वरवादी शब्द भी इसी कारण से अथेयिष्ट शब्द का अनुवाद नहीं हो सकता है। जैन, बौद्धादि लोग कहते हैं ‘ईश्वर नहीं है। परन्तु ऐसे कहते हुए ही उनमें देवताओं की परिकल्पना है। पूजा विधान है और उसके द्वारा परमार्थ साधन की परिकल्पना है। इसी उलझन के कारण पाश्चात्य अनुसन्धानकर्ताओं ने बौद्ध एवं जैनिइज्म को अथेयिस्ट कहने के बदले उन्हें रिलिजन कहकर पुकारा है। 

इसीलिए अंग्रेजी वाक्य ‘I do not believe in God’ का अनुवाद हिन्दी में ‘मैं भगवान पर विश्वास नहीं करता’ या ‘यकीन नहीं करता’ होगा। परन्तु वह भी समझ में नहीं आनेवाला वाक्य है। क्योंकि एक भारतीय अथवा जो रिलिजन से जुड़ा व्यक्ति नहीं है, उसमें अथेयिष्ट की परिकल्पना नहीं रह सकती तो उसका उपयोग कैसे कर सकता है? भारतीय सम्प्रदायों में True God जैसा एकैक सृष्टिकर्ता नहीं है। यह परिकल्पना भी नहीं है कि हमारे भगवान ने इस सृष्टि से बाहर रहकर एक उद्देश्य के लिए इस संसार की रचना की है। हमारे साम्प्रदायिक आचरण क्रिया, प्रवादि के निर्देशन से नहीं चलती है; जिसे स्वयं भगवान प्रत्यक्ष होकर उपदेश दिये हों। उसी प्रकार देववाणी के रूप में सत्यवाणी का पवित्र ग्रन्थ जो होता वह भी हमारे यहाँ नहीं है। देववाणी को पवित्र ग्रन्थ, प्रवादि आदि परम सत्य कहनेवाले देवता भी हमारे नहीं हैं। ऐसी स्थिति में भगवान पर विश्वास करने की बात आये तो उसका उत्तर कैसे दिया जाय? 

हमारे सम्प्रदाय में यदि कोई भगवान को नहीं मानता है तो उसे किस प्रकार का आचरण करना है? इसके लिए कोई क्रिया निर्देशन हमारे सम्प्रदाय में नहीं मिलता है। परन्तु सेमेटिक रिलिजन में एक अथेयिष्ट चर्च न जाकर, बाइबिल नहीं पढ़कर अपने अविश्वास को दिखा सकता है। हमारे यहाँ भगवान का वास केवल मन्दिर तक सीमित नहीं है। वह सर्वअंतर्यामी हैं हर जगह उनका अस्तित्व विद्यमान है। हमारे साम्प्रदायिक आचरण कहाँ नहीं होते हैं? गली-गली में पेड़-पौधे में होटल में न जाने कहाँ-कहाँ? भारतीय देवताओं की सत्यता और हमारे आचरण के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। सचमुच भगवान की इच्छा से घटित होनेवाले आचरण कौन-कौन से हैं? 

हमारे सम्प्रदाय में हर कला प्रकार के मूल में भगवान की प्रस्तुति की परिकल्पना है। वहाँ उन्हीं की आराधना होती है। भगवान पर विश्वास नहीं रखने वाला सही अर्थ में रसास्वादन नहीं कर सकता है। यदि करेगा भी तो वह यह समाधान करके करेगा कि यह केवल लौकिक मनोरंजन के साधन हैं या सौंदर्य शास्त्र से सम्बन्धित हैं तब उन्हें सेक्युलर वलय की शरण जाना पड़ता है जो हमारी संस्कृति में नहीं है। हमारे लिए जो बात समझ में ही नहीं आती है उसके पीछे पड़े तो क्या दुर्गति होती है देखते ही बनता। 

Authors

  • S. N. Balagangadhara

    S. N. Balagangadhara is a professor emeritus of the Ghent University in Belgium, and was director of the India Platform and the Research Centre Vergelijkende Cutuurwetenschap (Comparative Science of Cultures). His first monograph was The Heathen in his Blindness... His second major work, Reconceptualizing India Studies, appeared in 2012.

  • Dr Uma Hegde

    (Translator) अध्यक्षा स्नातकोत्तर हिन्दी अध्ययन एवं संशोधूना विभाग, कुवेंपु विश्वविद्यालय, ज्ञान सहयाद्रि शंकरघट्टा, कर्नाटक

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