अंग्रेजी भाषा के शब्द रिलिजन को हमने ‘धर्म‘ कहकर अनुवाद कर लिया है। उसी के आधार पर हम कहते हैं कि भारत में हिन्दू धर्म है। वास्तव में भारत में हिन्दू रिलिजन है ही नहीं। इस अनुवाद के कारण जो समस्याएँ उठी हैं उससे अटकलें पैदा हुई हैं। उस पर दृष्टिपात करेंगे।
किसी सरकारी कामकाज से सम्बन्धित प्रस्ताव डालते समय एक कालम रहता है कि आपका कौन सा रिलिजन है। बालू कहते हैं कि “मेरे स्कूल में पहली बार ऐसा कॉलम भरने का अवसर आया। इसमें ‘तुम्हारा रिलिजन/धर्म कौन सा है?’ लिखा था। यह बात मेरी समझ में नहीं आयी। मैंने पिताजी से पूछा उन्होंने ‘संकेती’ लिखने को कहा; मैंने वही लिखा जो पिताजी ने कहा। (हमें संकेती ब्राह्मण कहकर पुकारते हैं) परन्तु अगले दिन स्कूल में मास्टर जी ने मुझे बुलाकर सर पर थपकी मारकर लिखवाया ‘हिन्दू’ । आश्चर्य की बात यह है कि मेरे बुजुर्गों ने हिन्दू धर्म कहकर उसके बारे में कुछ भी नहीं बताया था। इस घटना के उपरांत धर्म नामक भाग में हिन्दू लिखना सीख लिया। यह केवल मेरा ही अनुभव नहीं है।”
हमारी संस्कृति के बुनियादी विषय को स्कूल में सीखने की नौबत क्यों आती है? भारत में हिन्दू धर्म है; उसके चार वेद नामक ग्रन्थ हैं; पुरुषार्थ उसका मूल्य है; कर्म पुनर्जन्म उसका तत्त्व है; वर्णाश्रम उसका क्रम है, ब्राह्मण उसके प्रीस्ट हैं इत्यादि विषयों को हमारी पाठ्य पुस्तक में सिखाया जाता है। पाठशालाओं में यह भी सिखाया जाता है कि उसमें पुरोहितशाही, अन्धविश्वास, जाति व्यवस्था आदि कुरीतियाँ भरी हुई हैं। इसके साथ समय-समय पर हिन्दू धर्म में सुधारण के इतिहास को भी पढते आये हैं। इसके साथ हम सोचने-समझने लायक बनते हए हिन्दु धर्म से सम्बन्धित अनेक चर्चाओं का भी भागीदार बनते हैं। वेद ही क्यों हिन्दू धर्म का ग्रन्थ है? भगवद्गीता व महाभारत क्यों नहीं? वेद है या नहीं? लिंगायत जाति है या धर्म? सिख, जैन, बौद्ध, हिन्दू है या नहीं? आदि उलझी हुई समस्याएँ हिन्दू धर्म में हैं। हिन्दू धर्म की रक्षा करने वालि कटिबद्ध संघ संस्थाएँ समझती हैं कि भगवद्गीता को लेकर अभियान (मोर्चा?) करने से धर्म की रक्षा होती है।
कई सालों के बाद मुझे समझ में आया कि हिन्दू धर्म नामक शब्द ‘हिन्दूइज्म’ अथवा ‘हिन्दू रिलिजन’ नामक अंग्रेजी शब्द का अनुवाद है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ा यह दूसरी बात है। परन्तु मुझे घेंट विश्वविद्यालय आकर रिलिजन से सम्बन्धित अनुसन्धान करते समय मालूम हुआ कि यह एक निरर्थक शब्द है।
जब भी हम हिन्दू धर्म शब्द का उपयोग करते हैं तब रिलिजन के पर्यायवाची रूप में ही धर्म शब्द का प्रयोग करते रहते हैं। परन्तु ये दोनों बिल्कुल अलग हैं। हमारी संस्कृति में धर्म नामक शब्द के लिए यही अन्तिम कहने लायक विवरण मिलता ही नहीं है।यदि कोई धर्म क्या है पूछे तो एकाध वाक्य में उत्तर देना नामुमकिन है। पर यह शब्द हमारे लिए चिर-परिचित शब्द है। उस दृष्टि से देखा जाय तो राजधर्म, वर्णाश्रम धर्म आदि शब्द मिलते है। परन्तु उपरोक्त रिलिजन शब्द का अनुवाद वाला ‘हिन्दू धर्म’ का अर्थ बिल्कुल ही दूसरे अर्थ में प्रयुक्त होता है। राजधर्म, वर्णाश्रम धर्म वगैरह हिन्दू नामक समुदाय का कर्तृत्व सूचक है। आधुनिक चिन्तन के अनुसार सभी लोग मानते हैं कि हिन्दूओं में धर्म ग्रन्थ और पुरोहितशाही धर्मतत्त्व का होना अनिवार्य है। परन्तु ये विचार हमारे धर्म की परिकल्पना में अजीब लगता है। क्योंकि ये अंग्रेजी रिलिजन की परिकल्पना का अनुवाद मात्र है। इसीलिए हिन्दू धर्म नामक शब्द रिलिजन का पर्यायवाची शब्द नहीं हो सकता। केवल क्रिश्चियनिटी, इस्लाम और जुड़ाइज्म को रिलिजन कहा जा सकता है। इन रिलिजन के अनुसार एक सृष्टिकर्ता है, वह सृजन करके उससे बाहर रहकर सृष्टि का निर्देशन करता है। अपने-अपने रिलिजन के मुताबिक उसे गॉड, अल्ला और यहोवा पुकारते हैं। आडम और ईव मनुष्य के आदिपुरुष हैं। जिनकी सृष्टि सृष्टिकर्ता से हुई है। ये दोनों गॉड की आज्ञा का उल्लंघन कर, शापित होकर भू-लोक आने के कारण ही मानव संतती का निर्माण हुआ। इसीलिए इस भूमि में वास करने वाले सभी मनुष्य देवलोक से भ्रष्ट होकर नीचे गिरे हुए पापी हैं। इन मनुष्यों को फिर से भगवान को पाना है तो उसके उद्देश्य के मुताबिक जीवनयापन करना है, वह मार्ग ही रिलिजन है।
रिलिजन अपने बारे में क्या कहता है? उनके अनुसार मनुष्य को सत्यदेव के साथ जोड़नेवाला मार्ग रिलिजन है। इस शब्द का मूल-धातु ‘रि-लिगेर’ का अर्थ होता है; फिर से जोड़ना। इस मार्ग को तय करने की रीति-सिखाने वाले ही सत्यदेव हैं। इसीलिए रिलिजन अधिकृत मार्ग है। केवल उपरोक्त सेमेटिक रिलिजन की कथा के सन्दर्भ में उस शब्द का अर्थ निकलता है। रिलिजन वही है जो इस संसार के प्रति निर्दिष्ट योजना का निरूपण करता हैं। उनका विश्वास है कि इस सृष्टि और संसारिक व्यापार के पीछे एक मात्र सत्यदेव की निश्चित योजनाएँ होती हैं।
रिलिजन में सृष्टि के सम्बन्ध में जो उनकी अपनी कहानी है; उसे सत्य कहकर समर्थन करते हैं। उन्हें उस प्रकार करना अनिवार्य है। उसका समर्थन करने के लिए उनके पास सत्यदेव की बताई वाणी है, उस पर लोगों को गहरा विश्वास रखना चाहिए इसी कारण रिलिजन में पवित्र ग्रन्थ एवं प्रवादि को वे महत्त्व देते हैं। रिलिजन के बीच में अदला-बदली करना नामुमकिन है। मान लीजिए आप मुहम्मद को प्रवादि कहकर कुरान को सत्य कहते हैं, तो फिर आप क्रिस्त पर विश्वास नहीं कर सकते हैं। क्योंकि आप जिसे सत्यदेव कहकर विश्वास रखते हैं, केवल उसी पर विश्वास रख सकते हैं। इसीलिए आप जिस रिलिजन के हैं, उस रिलिजन का जो मार्गदर्शन है, कदाचित उस पर ही विश्वास रखकर चलना है। हर एक रिलिजन के अनुयायी के आचरण के बारे में उनके अपने खास पवित्र ग्रन्थ के जो डॉक्ट्रिन हैं उसमें निर्देशन रहता है। इस डॉक्ट्रिन को हमने धर्मतत्त्व कहकर अनुवाद किया है।
क्रैस्तों के अनुसार हर मनुष्य में भगवान के प्रति आस्था जरूर रहती है। इसी सिद्धान्त से पाश्चात्य विद्वानों ने निर्णय लिया कि रिलिजन मानव संस्कृति का अविभाज्य अंग है। जब पाश्चात्यों का भारत में आगमन हुआ, तब यहाँ के मुसलमान जो थे उनके बारे में उन्हें जानकारी थी। परन्तु भारत में उन्हें विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों से परिचय हुआ। उन अन्य सम्प्रदाय के लोगों को मुसलमान लोग हिन्दू कहते थे। परन्तु विद्वान के सामने एक समस्या खड़ी हुई। हिन्दूइसम रिलिजन है तो उसके आधारभूत धर्मग्रंथ, डॉक्ट्रिन, प्रवादि, आदि कौन हैं। उन्हें उत्तर नहीं मिला। तो विद्वानों ने निर्णय लिया कि पहले हिन्दू धर्म शुद्ध था। अब भ्रष्ट हो चुका है। इसीलिए लोग यह बातें भूल गये।
फिर भी समस्या सुलझी नहीं; जैसी की तैसी बनी रही। कैसे? शुद्ध हिन्दू रिलिजन के तत्त्व कौन से हैं, वह शुद्ध है या नहीं, कैसे पहचाना जा सकता है? इसे ढूँढ़ने की प्रक्रिया में लगे चिन्तक मान गये कि प्रोटेस्टैंट तत्त्व ही परम सत्य है। इसीलिए शुद्धता की कसौटी में कसने के लिए उन्हें प्रोटेस्टैंट तत्त्व ही मिले। इसीलिए प्रोटेस्टैंट का प्रतिपादन ही शुद्धता के लिए प्रमाण बने। इस प्रकार हमारे प्राचीन ग्रन्थों में पाये जाने वाले निराकारोपासना, ब्रह्मन, परमतत्त्व समानता, स्वातंत्र्य, वैचारिकता आदि तत्त्वों को चुनकर उन्हें शुद्ध हिन्दूइज्म के तत्त्व कहकर हमारे आचरण का नया भाष्य किया गया। मूर्ति पूजा, जाति भेद, पुरोहितशाही आदि को भ्रष्ट रिलिजन का आचरण कहा गया। क्योंकि इन्हीं लक्षणों के आधार पर प्रोटेस्टैंट ने कैथोलिकों को भ्रष्ट कहा था। फलस्वरूप यह माना गया कि ऋग्वेद में शुद्ध रिलिजन के तत्त्व निहित हैं। वह शुद्ध हिन्दूइज्म है। क्योंकि उसमें जाति व्यवस्था का उल्लेख नहीं मिलता। उसमें ब्राह्मण पुरोहितशाही नहीं है। मूर्ति पूजा नहीं, स्त्री समानता है आदि।
दुनियाभर की संस्कृति में रिलिजन को ढूँढ़ने के प्रयास में पाश्चात्य विद्वान और भी उलझ गये। आखिर रिलिजन क्या है? यह बहुत बड़ी पहेली बन गयी। इन सभी वैचारिक उलझनों को रिलिजन का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने भारतीय लोगों पर थोप दिया। फलस्वरूप समझाने पर भी बात समझ में नहीं आती है कि हमारा ‘हिन्दू रिलिजन’ रिलिजन नहीं है। पाश्चात्य विद्वानों के कारण हम एक नागरिक संस्कृति का परमार्थ ही रिलिजन है कहने के आदी बन गये हैं। हम ऐसे चक्कर में फंस चुके हैं कि हमारा रिलिजन है कहकर समर्थन करने की नौबत आयी है। यदि हम नहीं कहेंगे तो हम अनागरिक कहे जायेंगे। हम ये नहीं सोचते हैं कि एक ही गॉड, एक ही प्रोफेट, एक ही धर्मग्रन्थ और यही अन्तिम सत्य मानने वाले अर्थात् रिलिजन वाले मात्र क्यों नागरिक कहलाते हैं।
आजतक हिन्दू धर्म को लेकर जिन विद्वानों ने चर्चा की है, वो इन मौलिक उलझनों या समस्याओं का सामना किये बिना नहीं रहे।परन्तु रिलिजन को छोड़कर हिन्दू संस्कृति को समझने का प्रयत्न नहीं हुआ। जो उलझ गया उसे सुलझाने का प्रयास करते-करते और भी उलझन में फँस गये। इसीलिए हमारे पूर्व सूरियों ने हिन्दू संस्कृति के सम्बन्ध में सही पहचान करने का विफल प्रयास किया है। उनका कहना है कि हमारा हिन्दू धर्म ‘सेमेटिक रिलिजन’ जैसा नहीं है। ‘हिन्दू’ नामक रिलिजन यहाँ नहीं है। फिर भी इनके कहने में कुछ दुविधापन दिखाई देता है कि ‘हमारा हिन्दू रिलिजन कुछ अलग प्रकार का है अथवा भारत में हिन्दू नामक रिलिजन नहीं है, परन्तु शैव, वैष्णव, शाक्त, आदि रिलिजन हैं आदि बातें सुनने में आती हैं। एक सम्प्रदाय को रिलिजन कहकर क्यों पुकारा जाता है; विद्वानों ने भी इन सवालों का सही व स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। विद्वानों का मानना है कि रिलिजन किसी न किसी रूप में भारत में जरूर है ।
मैं जो कह रहा हूँ वह इसके बिल्कुल विरुद्ध है। भारत में रिलिजन की उत्पत्ति ही नहीं हुई है। इसी लिए रिलिजन का भाषांतर धर्म बनाकर हमारे यहाँ हिन्दू धर्म है कहे तो यह आधारहीन विचार होगा। ‘धर्म‘ नामक शब्द पर भी कोई निर्दिष्ट अर्थ नहीं निकलता है। रिलिजन तो है ही नहीं। कुल मिलाकर कहना है तो धर्म का अर्थ रिलिजन होने के कारण से ही पथ भ्रष्ट हुआ है।
Authors
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S. N. Balagangadhara is a professor emeritus of the Ghent University in Belgium, and was director of the India Platform and the Research Centre Vergelijkende Cutuurwetenschap (Comparative Science of Cultures). His first monograph was The Heathen in his Blindness... His second major work, Reconceptualizing India Studies, appeared in 2012.
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(Translator) अध्यक्षा स्नातकोत्तर हिन्दी अध्ययन एवं संशोधूना विभाग, कुवेंपु विश्वविद्यालय, ज्ञान सहयाद्रि शंकरघट्टा, कर्नाटक